RARE COLLECTION OF KABIR----FROM MY BOOK KABIR KO JANA MAINE, AWARDED SATITYRATNA PURUSKAR FROM SAHITY ACADEMY,HINDI
अव्वल अल्लह नूर उपाया कुदरत के सब बन्दे //एक नूर ते सब जन उपज्या कौन भले को मंदे//
मुहि मरने को चाऊ है मरों तो हरी के द्वार/मत हरि पूछे को है परा हमारे बार //
गूंगा हुआ बावला ,बहरा हुआ कान/ पाऊ थै पंगुल भया,सतगुर मारया बाण//
कबीर नौबती आपनी,दिन दस लेहु बजाई /ये पुर पटन ये गली बहुरि न देखे आई //
एक दिन ऐसा होइगा ,सब सुं पड़े बिछोई/राजा राणा छत्रपति सावधान किन होई //
अकथ कहानी प्रेम की ,कछु कही न जाई /गूंगे केरी सरकरा ,बैठा मुस्काई //
जो तन माहे मन धरे ,मन धरी निर्मल होई /साहिब सो सन्मुख रहे ,तौ फिरि बालक होई //
मन प्रतीति न प्रेमरस न इस तन में ढंग/क्या जाणो उस पिय सूं कैसे रहसी रंग //
मो को कहाँ ढूंढे बन्दे मैं तो तेरे पास में/न मैं देवन ,ना मैं मस्जिद ना काबे कैलाश में //
मन प्रतीति न प्रेमरस न इस तन में ढंग/क्या जाणो उस पिय सूं कैसे रहसी रंग //
मो को कहाँ ढूंढे बन्दे मैं तो तेरे पास में/न मैं देवन ,ना मैं मस्जिद ना काबे कैलाश में //
कबीर यह घर प्रेम का खाला का घर नाही/सीस उतारे हाथ करी सो पैरू घर माहि//
आया था संसार में,देखन को बहु रूप /कहै कबीरा रब ही ,पड़ी गया नज़रि अनूप //
जब मैं था तब हरि नही,अब हरि है मैं नाही/सब अँधियारा मिति गया ,जब दीपक देख्या माही//
कबीर भाठी कलाल की,बहुतक बैठे आई/सर सौपे सोई पिवै,नाही तो पिया ना जाई//
सातों सबद जू बाजते,घडी घडी होते राग /ते मंदिर खाली पड़े बैसन लागे काग//
हाड़ जले ज्यूँ लाकडी,केश जाहे ज्यूँ घास /सब तन जलता देखि करी ,भय कबीर उदास //
माटी मलनी कुम्हार की ,घडी सहे सिरि लात/इही अवसर चेत्य नहीं ,चूका चूका अबकी घात//
अव्वल अल्लह नूर उपाया कुदरत के सब बन्दे //एक नूर ते सब जन उपज्या कौन भले को मंदे//
मुहि मरने को चाऊ है मरों तो हरी के द्वार/मत हरि पूछे को है परा हमारे बार //
गूंगा हुआ बावला ,बहरा हुआ कान/ पाऊ थै पंगुल भया,सतगुर मारया बाण//
कबीर नौबती आपनी,दिन दस लेहु बजाई /ये पुर पटन ये गली बहुरि न देखे आई //
एक दिन ऐसा होइगा ,सब सुं पड़े बिछोई/राजा राणा छत्रपति सावधान किन होई //
अकथ कहानी प्रेम की ,कछु कही न जाई /गूंगे केरी सरकरा ,बैठा मुस्काई //
जो तन माहे मन धरे ,मन धरी निर्मल होई /साहिब सो सन्मुख रहे ,तौ फिरि बालक होई //
मन प्रतीति न प्रेमरस न इस तन में ढंग/क्या जाणो उस पिय सूं कैसे रहसी रंग //
मो को कहाँ ढूंढे बन्दे मैं तो तेरे पास में/न मैं देवन ,ना मैं मस्जिद ना काबे कैलाश में //
मन प्रतीति न प्रेमरस न इस तन में ढंग/क्या जाणो उस पिय सूं कैसे रहसी रंग //
मो को कहाँ ढूंढे बन्दे मैं तो तेरे पास में/न मैं देवन ,ना मैं मस्जिद ना काबे कैलाश में //
कबीर यह घर प्रेम का खाला का घर नाही/सीस उतारे हाथ करी सो पैरू घर माहि//
आया था संसार में,देखन को बहु रूप /कहै कबीरा रब ही ,पड़ी गया नज़रि अनूप //
जब मैं था तब हरि नही,अब हरि है मैं नाही/सब अँधियारा मिति गया ,जब दीपक देख्या माही//
कबीर भाठी कलाल की,बहुतक बैठे आई/सर सौपे सोई पिवै,नाही तो पिया ना जाई//
सातों सबद जू बाजते,घडी घडी होते राग /ते मंदिर खाली पड़े बैसन लागे काग//
हाड़ जले ज्यूँ लाकडी,केश जाहे ज्यूँ घास /सब तन जलता देखि करी ,भय कबीर उदास //
माटी मलनी कुम्हार की ,घडी सहे सिरि लात/इही अवसर चेत्य नहीं ,चूका चूका अबकी घात//