Saturday, December 24, 2011

पालिटिक्स-गेंदा-फूल


“वैधानिक चेतावनी - इस लेख के कुछ पात्र वास्तविक और कुछ काल्पनिक हैं , यह लेख कुछ सत्य घटनाओं पर आधारित है और कुछ असत्य , इस लेख को पढने में अपने विवेक का सहयोग ना लें  , स्वावलंबी बनें | कथा और कथानानक मात्र सयोंग नहीं है , यह मेरी ही हरकत है |”

कल जार्ज साहब की मुलाकात मुझसे एयर-पोर्ट पर हुई , जी हाँ आप ठीक पढ़  रहे हैं , उनकी मुलाकात मुझसे हुई ,यह मेरे बड़प्पन की एक झलक है ,जिसे मैं गोपनीय रखता हूँ |
                                                           वैसे मैं एयर-पोर्ट को तीर्थ स्थान ही समझता रहा हूँ ,जहाँ बिना कृपा के प्रवेश संभव नहीं है ,कृपा भक्ति से आती है ,और भक्ति मुझे नहीं आती ,अतः किसी दूसरे भक्त की आड़ में ही वहाँ पहुँच पाता हूँ ,अधिकतर अपने बॉस को खुश करने हेतु ,अथवा उनकी बेगम को देखकर खुद खुश (ध्यान से पढ़ें मैंने खुद-ख़ुशी नहीं लिखी है ) होने उनकी आगवानी में गेंदे की माला लेकर वहाँ पहुँचता हूँ ,गेंदा मेरा प्रिय पुष्प  है ,क्योंकि इसे हर स्थान पर प्रयोग किया जा सकता है ,मंदिर से लेकर श्मशान तक , नेता से लेकर अभिनेता तक , मेरा तो मानना है की सरकार को इसे राष्ट्रीय पुष्प घोषित कर देना चहिये|
                    अब तक तो आपने मेरे चरित्र का बखान सुना ,मानस में भी तुलसी ने राम के पूर्व रावण को अवतरित कराया है , मैं भी उसी परंपरा का निर्वाह कर रहा हूँ |
                         हाँ , तो मैं  जार्ज साहब पर वापस आता हूँ , मिलन -स्थली का महात्म्य तो मैंने बता ही दिया ,और मेरे वहाँ होने का प्रयोजन भी आप समझ गए होंगे |
                 ,समय से पूर्व पहुंचना मेरी खासियत है , सिवाय दफ्तर और घर के ,अतः समय का सदुपयोग के उद्देश्य से उनसे पूछ बैठा कि आप के यहाँ होने का मकसद -कहीं से आ रहे हैं या कहीं जा रहे हैं या फिर मेरी ही तरह .......?(अंतिम तीन शब्द मेरे आत्मा की आवाज़ थी ,जो उजागर नहीं हुई)
                               खैर ,मेरी आत्मा  भी वैसे कहाँ उजागर है ,आत्मा की बात फिर कभी ,अभी आगे बढते हैं -हाँ ,तो उन्होंने मुझे कृपा-दृष्टी से या सरल शब्दों में घूरते हुए जवाब दिया -"भाई (यह शब्द  मैं अपनी ओर से जोड़ रहा हूँ ,लेखन शैली की सुन्दरता हेतु ) मेरी याददाश्त चली गयी है ,अतः ठीक -ठीक मुझे भी मालूम नहीं ,शायद मोरारजी भाई के पास से आ रहा हूँ ,चौधरी चरण जी की आगवानी में यहाँ हूँ ,और शायद अटल जी के पास जाऊंगा |
           पर , श्रीमान प्रथम दो तो आपकी  याददाश्त की तरह ही जा चुके हैं और तीसरे की  यादाश्त जा चुकी है,मैंने उत्तर दिया |
              क्या!? , मोरारजी भाई नहीं रहे ,मुझे तो पहले ही डर था की “सोनिया गाँधी” उन्हें मरवा डालेंगी ,वो तानाशाह प्रधान-मंत्री है ,उसे बाहर करो ,जन-आन्दोलन चलाओ ,उन्होंने उग्र हो कर जवाब दिया |
                    जार्ज साहब!,आप भूल कर रहे हैं सोनिया नहीं इंदिरा ,खैर वो भी गुज़र गयीं ,आप शांत हो जाएँ ,आन्दोलन की ज़रूरत नहीं पड़ेगी ,यह विनती मैंने उनसे की |

                                        वो ,लगभग शोक से ,वहीँ बैठ गये और रुदन -मिश्रित स्वर से मुझसे पूछ बैठे ?-कब हुआ ये ?आह ! अब क्या होगा ?
ढाढस ,बढ़ाने के उद्देश्य से मैंने मोरारजी भाई पर शोक व्यक्त करते हुए कहा -" अपूर्णीय  क्षति है| मोराजी भाई का जाना ,समाजवाद के स्तम्भ थे मोरारजी "
                   जार्ज साहब ,ने और कातरता से उत्तर दिया -"मैं इंदिरा की बात कर रहा हूँ ,अब किसे सत्ता से बाहर करने का नारा देंगे हम ,"इंदिरा हटाओ -देश बचाओ" तो हमारे समाजवाद का मूल -मंत्र है ,अब समाजवादी आंदोलनों का क्या होगा ?अब देश का उद्धार कैसे कर पाएंगे ?जयप्रकाश जी को क्या जवाब देंगे ?भारत को किस से मुक्त करेंगे ?यह मेरी व्यक्तिगत क्षति है,!
                   जार्ज जी किसी को जवाब देने की ज़रूरत नहीं है ,जयप्रकाश जी भी जा चुके ,रही बात समाजवाद की तो पेड़ का पता नहीं पर फल कई लोग खा चुके और कई अभी भी कुतर रहे हैं ,यह कह कर मैंने एक माला (वही गेंदे वाली ) उन्हें अर्पित कर दी ,और एक नई माला लेने (आप अगर भूल गए हों तो याद दिला दूं ,मेरा और मेरी माला (कृपया दूसरा अर्थ न लगायें ) का प्रयोजन मूलतः बॉस के बेगम और बॉस की श्रद्धा -भक्ति थी ) श्मशान की ओर निकल पड़ा ,क्योकि री- साईकिल्ड पदार्थों पर मेरी विशेष आस्था है ,पर्यावरण की जागरूकता और सस्ता होना इसके  कारण हैं |