Saturday, January 7, 2012

'विश्व हिंदी नौटंकी'


'विश्व हिंदी नौटंकी'
"विश्व हिंदी दिवस" में तीन दिन शेष है , अर्थात १० जनवरी २०१२ को "वैश्विक हिंदी नौटंकी" के  सञ्चालन का मंच लगभग तैयार है , पात्रों ने भी अपने -अपने संवादों को खरीदना प्रारंभ कर दिया है ,और हमारे जैसे काम-चलाऊ लेखकों को आर्थिक रूप से सुदृढ़ होने के संकेत दिखलाई देने लगे हैं |
                                   इतनी जानकारी आप तक पहुचाने के बाद भी एक महत्वपूर्ण सूचना आप तक पंहुचा -पाने का खेद है ,आयोजन -स्थल की कोई सूचना मेरे पास उपलब्ध नहीं है ,वैसे भी किसी समारोह के आयोजन -स्थल से मेरा प्रयोजन सीमित ही रहा है - "मोको कहाँ सीकरी सों काम "|
                                       मेरे जैसे कई और भी फुटकर लेखक हैं , जो सत्ता -प्रतिष्ठान के आयोजनों और प्रशस्ति -पत्रों से दूर रह कर साहित्य की सेवा करना अपना परम -धर्म मानते हैं ,हालाँकि इस तपस्या को सफलीभूत करने का श्रेय मुख्यतः 'समारोह -आयोजन -समीति 'को अधिक दिया जाना चाहिए जो हमारे जैसे लेखकों का नाम आमंत्रण -पत्र पर अंकित करना अक्सर भूल जाते हैं |
          ' जेपी आन्दोलन और इंदिरा विरोध' की आड़ में यह गुरु -मंत्र कई साहित्य -विभूतिओं ने अपनाया है ,'महादेवी जी 'और' बाबा नागार्जुन 'ने तो सचमुच में ही 'इंदिरा जी 'के हाथों से पुरस्कार लेना अस्वीकार कर दिया ,ये और बात है की गरीब लेखकों के लिए ट्रस्ट स्थापना हेतु 'महादेवी जी 'ने बाद में उन्ही के हाथों से पुरस्कार ग्रहण किया ,और 'बाबा नागार्जुन' ने आन्दोलन के दौरान अपने साथ बंद समाजवादियों को जेल से बाहर आकर "वेश्या -दल " के उपनाम से सुशोभित किया !
                                      कई साहित्यकारों ने इस पर खूब बवाल कटा की महादेवी जी ने इंदिरा जी के हाथों से पुरस्कार क्यों ग्रहण किया ,अर्थात उन्हें चेक से या मणि-आर्डर से पुरस्कार लेना चाहिए था ,परन्तु उन हाथों से नहीं |
                         एक प्रमुख साहित्यकार जिनका तकिया -कलाम "मैं हिंदी का ग्रीब लेखक हूँ " रहा हालाँकि दिल्ली में उनके फार्म -हाउस रंगीन शामों के लिए मशहूर रहा ,ने तो इस व्यथा से विश्व -हिंदी -सम्मलेन का बहिष्कार तक कर डाला |अंग्रेजी अख़बारों ने इस प्रकार प्रकाशित किया –“He broke down on stage “
                                              आगामी १० तारीख को भी हिंदी की दुर्दशा पर आंसू बहाए जायेंगे ,हिंदी को विश्व -पटल पर लाने की कसमे खायी जाएँगी ,भले ही हिंदी को अपने देश में भी कोई विशेष -दर्जा हासिल हो ,पर संयुक्त -राष्ट्र में आधिकारिक दर्जा दिलाने की मांग की जाएगी |
                                       सारे हिंदी भक्त इस बात पर सहमत दिखेंगे की हिंदी को पढाई के माध्यम में प्रयोग किया जाये ,हालाँकि खुद उनके ही  बच्चों का दाखिला और परवरिश अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में ही होती रही है |
                         आयोजन स्थल का तो पता ठीक से ज्ञात नहीं है ,लेकिन कई सालों से 'मारीशस या फिजी' में समारोह का आयोजन होता रहा है ,तर्क यह दिया जाता है की वहाँ हिंदी की जड़ें भारत से जुडी है ,जबकि वहाँ मात्र एक प्रतिशत से भी कम लोगों को हिंदी की जानकारी है |
                                          दोनों देश  प्रमुक पर्यटन स्थल हैं ,तो उनका चयन केवल चमचों और चाटुकारों को प्रकृति -दर्शन के हितार्थ होता रहा है |
                                   लिखते -लिखते दिन बदल गया ,तो मात्र दो दिन और इंतजार कीजिये 'विश्व हिंदी नौटंकी "की .........!