Wednesday, December 14, 2011

सर मत खापइए


कुछ ऐसी बातें होती हैं ,जिन्हें सार्वजनिक करना मेरे लिए अत्यंत कठिन हो जाता है ,और फिर मकसद ही क्या है ,लोकप्रियता ? मुझे निजता ,लोकप्रियता के आगे बड़ी फ़ीकी लगती है ,अनेक महानुभावों के आस -पास मेरा मेरा जीवन गुज़रा ,जिनके  उद्धरण से ही लोकप्रिय बन सकता हूँ ,पर क्या निजता का मोल लोकप्रियता से चुकाया जा सकता है ?सौदा बड़ा कठिन है ,|
                                                अगर मैं लिखता हूँ तो ये मेरी समस्या है ,क्यों किसी को पढने के लिए विवश करूँ ,क्यों एक शांत चित्त को उकसाया जाये की वह मेरी तरह पागल बने ?आपने अपने जीवन -सार के रूप में जो भी कूड़ा -करकट लिखा ,उस प्रदुषण का दूसरा भागीदार क्यों बने ?
                                                   मेरे जीवन में जो कुछ अच्छा-बुरा हुआ ,उसका उत्तरदायी मैं स्वयं हूँ ,फिर क्यों ये चेष्टा की जाये ,की जो भी मिले उसे अपना रुदन -गान सुनाऊँ, उस बेचारे का सिर चाटूं,साहित्य के नाम पर ,!
                                 मैंने ये सब इस लिए लिख डाला की मेरा समय काटे नहीं कट रहा था ,आप अपना समय व्यर्थ न करें ,ये मेरा प्रलाप है ,आप बच के निकल जाएँ ,हाँ ,यदि आपका भी समय न कट रहा हो ,तो आप भी सुर में सुर मिला सकते हैं ,आपको बेरोज़गारी भत्ता का प्रमाण -पत्र मेरे इस कचरे पर टिप्पणी करने में सहायक हो ,तो मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी |