सन्यास, साधना ,साधुता ,खोज सत्य की ,झूटे जीवन से मुक्त होने की खोज है /जिसने जान लिया की यहाँ लाभ -हानि बराबर है ,अब वह इस पागलपन में न पड़ेगा /जिसने जान लिया ,आखिर में हिसाब बराबर हो जाता है / हाथ लाई शून्य जैसा ;ऐसा जान लिया जिसने ,वह इस जीवन से मरने को तैयार हो जाता है /वही सन्यास का कदम है वही सन्यस्त होने की शुरुआत है /
मैं कौन हूँ यह ,जिस दिन जान पाउँगा ,वह मेरे जीवन के एक मात्र उपलब्धि होगी /लेकिन यह जानने की न कोई इच्छा है मेरी और ना ही इस बात के लिए मैं सोचने वाला हूँ / मैंने जो मदहोश हुआ ,उसी ख्वाब में डूबा रहना चाहता हूँ ,आकंठ और अखंड, यही मेरी साधना और यही तृष्णा है आओ मेरे पथिक ! मेरी नीरसता से विश्राम पा सको! आओ प्यारे !अगर मुझ में समा सको !-तुझ पे अपना भार सौप कर मैं तो उड़ा!
Saturday, November 12, 2011
तुमने अब तक जो किया है ,गलत ही किया है /अभी भी देर नहीं हो गयी है / कुछ किया जा सकता है /एक छण में भी क्रांति हो सकती है /
मगर पहली बात ,इन चीजों को अब तुम पूंजी कहना बंद करो / अगर तुम इनको पूंजी कहे चले गए तो इसी कहने के कारण इसी में ग्रसित रहोगे /इसीलिए मैं जोर देकर कह रहा हूँ की इसे अब पद मत कहो ,प्रतिष्ठा मत कहो ;जिससे कुछ भी नहीं मिला ,इसे अब तो पूंजी जैसे सुन्दर शब्द देने बंद करो /
आशा के साथ बहुत दिन
रह लिए ,कुछ पाया नहीं /अब निराशा से भी दोस्ती कर के देखो /कौन जाने जो आशा से नहीं
हुआ , वह निराशा से हो जाये / और मैं तुमसे कहता हूँ ;होता है / जहाँ आशा हार जाती
है ,वहां निराशा जीत जाती है /कितने -कितने जन्मों से तुम आशाओं के सहारे चल रहे हो
,अब निराशा का सहारा लो /कितने दिन तक तो तुमने संत्वानाएं खोजीं ,अब सांत्वना मत खोजो
/ अगर अर्थ-हीनता है तो अर्थ-हीनता सही /अब तुम स्वीकार करो जीवन जैसा है ,अब तुम अस्वीकार
मत करो /
और यह
नयी आशा नहीं होगी :यह सत्य होगा /आशा-निराशा दोनों चली जाएगी और तुम्हारे भीतर वही
रह जायेगा ,जो वस्तुतः है /और उसी में आनंद है उसी में मुक्ति है /
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