Tuesday, September 23, 2014

प्रेम वीणा

तुम्हारी प्रेम-वीणा का अछूता तार मैं भी हूँ,
मुझे क्यों भूलते वादक विकल झंकार मैं भी हूँ|

मुझे क्या स्थान-जीवन देवता होगा न चरणों में,
तुम्हारे द्वार पर विस्मृत पड़ा उपहार मैं भी हूँ|

बनाया हाथ से जिसको किया बर्बाद पैरों से,


विफल जग में घरौंदों का क्षणिक संसार मैं भी हूँ|

खिला देता मुझे मारूत मिटा देतीं मुझे लहरें,
जगत में खोजता व्याकुल किसी का प्यार मैं भी हूँ|

कभी मधुमास बन जाओ हृदय के इन निकुंजों में,
प्रतिक्षा में युगों से जल रही पतझाड़ मैं भी हूँ|


सरस भुज बंध तरूवर का जिसे दुर्भाग्य से दुस्तर,
विजन वन वल्लरी भूतल-पतित सुकुमार मैं भी हूँ|

No comments:

Post a Comment

MERE KUCH KALAM,APKE NAMM!