Friday, January 6, 2012

तुम रो दो मेरा नाम अमर हो जाये


तुम रो दो मेरा नाम अमर हो जाये
एक नेता जी दहाड़ मार कर रो पड़े  , मिडिया ने कई दिनों तक उनके रुदन और उनकीरुदनशैली” को और भी कारुणिक रूप में प्रस्तुत किया ,प्रस्तुति भी इतनी जीवंत की  कई स्त्रियाँ तो इतनी भाव -विभोर हो गयीं की  उन्हें अपने  अश्रु -धार कोनासिकाद्वार” के माध्यम से बाहर निकालना पड़ा |

                यहाँ तक तो ठीक ही था , नेता जी ने अपनी प्रस्तुति दी , मिडिया ने अपनी और स्त्रियों ने अपनी ,’पेखिये  मज्जन फल तत्काला की तर्ज़’ पर श्रीमान नेता जी को न्यायोचित पुरस्कार भी मिल गया |

                                    चूँकि ,हमें आज तक कोई पुरस्कार प्राप्त नहीं हुआ ,यहाँ तक की किसी पुरस्कार समारोह में दर्शक -दीर्घा भी नसीब नहीं हुई ,और एक भी स्त्री हमारे लिए आज तक नहीं रोई , उल्टे सारी जवानी हम खुद ही रोते रहे ,हम और हमारे जैसे पीड़ितों ने एक स्वर से उनके विरुद्ध आन्दोलन शुरू कर दिया |

                      उदर-विकार से पीड़ित होने के कारण अनशन हमारे लिए असाध्य है ,अभी भी   जमानत पर ही है अतः  ‘ जेल -भरो -आन्दोलनके विचार से असहमति है , अंततः हमने यह निश्चय किया की नेता जी का मुखर विरोध किया जाये , और हम सब प्रगतिशील लेखकों ने अपनी एक -एक रचना उनके विरोध में समर्पित कर दी |

                                “कोलावेरी” के तर्ज़ पर रचनाओं के कई संस्करण गए ,सबने अपने विचार प्रस्तुत किये ,किसी ने ये कहा की उनका रोना मौलिक अभिव्यक्ति नहीं थी ,अतः जैसे हमारी चुराई और उड़ाई सामग्री को निष्ठुर संपादक ख़ारिज करते आये हैं ,उनके रुदन को भी खारिज किया जाये |

                                   एक और महोदय ने यह प्रश्न उठाया की संविधान में सभी नागरिकों को बराबरी का दर्ज़ा हासिल है ,अतः उन्होंने भ्रष्टाचार से  हमें अलग क्यों रखा ,लेखकों को भी अवसर मिलना ही चाहिए |

                         तृतीय महानुभाव इस बात से आहत दिखे की नेता जी को रोने से टिकट क्यों मिला ? हमें तो रोने की हर शैली का अभ्यास है ,रो -रो कर किराने वाले से लेकर पान वाले तक को  उधार का आधार बनाया ,हो सकता है नेता जी ने हमारी शैली चुराई ,अतः यह सर्वाधिकार हनन का मामला है |
      सुर में हमने भी सुर मिलाया और चाल-चरित्र -चेहरे वाली पार्टी को कठघरे में ला खड़ा किया ,मेरी चाल उनसे कम कैसे हो गयी ,परेड  करवा कर देख लेते  ,हमें तो हर आड़ी-सीधी चाल का विशेष अनुभव है , चरित्र ठीक होता तो अब तक कुवारे क्यों घूम रहे होते ? और बात रही चेहरे की तो अपनी प्रशंसा खुद क्या की जाये ,अतः उस पार्टी ने हमें मौका देकर अन्याय किया है |
                                  सारांश  जो आपको पता ही है ,नेता जी को हम आधुनिक विश्वमित्रों ने मध्य में लटका दिया ,लेखकों की प्रथम विजय की गाथा को आप भी गाएँ तो गान अमर हो जाये !