//आदमी मनस-शरीर
है //
बुद्ध के पास
एक राजकुमार ,श्रोण
ने दीक्षा ली
/महाभोगी था /और
जो होना था
वही हुआ /जैसे
ही दीक्षा ली,अपने को
सताना शुरू कर
दिया /बौद्ध भिक्षु
दिन में एक
बार भोजन करते
हैं /वह दो
दिन में एक
बार भोजन करता
था /खुद बुद्ध
और उनके भिक्षु
रास्ते पर चलते
;वह रास्ते के
किनारे काँटों में ,पत्थरों
में चलता /उसके
पैर लहू-लुहान
हो गए /उसकी
देह सुन्दर थी
-राजकुमार था-कोमल
थी ;फूल जैसी
थी /छह महीने
में सूखकर कांटा
हो गयी ;काला
पड़ गया /उसके
परिवार के लोग
आते थे ,पहचान
भी नहीं पाते
थे /इतना विकृत
,कुरूप हो गया
/सारे पैरों में
घाव हो गए
/पेट पीठ से
लग गया /
बुद्ध ने एक
साँझ उसके झोपड़े
पर जाकर कहा
की श्रोण तुझसे
एक बात पूछनी
है /मैंने सुना
है की जब
तू राजकुमार था
,तो वीणा बजाने
में बहुत कुशल
था /श्रोण ने
कहा ,यह सच
बात है /वीणा
में मुझे रस
था/मैं दीवाना
था /घंटों वीणा
का अभ्यास करता
था /और निश्चित
मैंने वीणा बजाने
में गहरी कुशलता
पा ली थी
/दूर -दूर तक
मेरा नाम हो
गया था /लेकिन
आपको यह पूछने
की जरुरत क्यों
पड़ी ?
बुद्ध ने कहा
,मैं इसीलिए पूछने
आया हूँ ,की
मैंने कभी वीणा
बजाई नहीं /तू
मुझे समझा सकेगा /अगर वीणा
के तर बहुत
ढीले हों ,तो
संगीत पैदा होता
है या नहीं
?श्रोण ने कहा
,आप भी कैसी
बात करते हैं
!वीणा बजाना या
वीणा को जानना
जरुरी नहीं :कोई
भी कह सकता
है की वीणा
के तार अगर
बहुत ढीले हों
उनमे संगीत पैदा
न होगा /
तो बुद्ध
ने पूछा,अगर
तार बहुत कसे
हों तो संगीत
पैदा होता है
या नहीं ?
श्रोण ने कहा
,बहुत कसे हों
तो टूट जायेंगे
/बहुत ढीले हों
तो उनमे टंकार
न होगा /
तो ,बुद्ध ने कहा
,फिर वीणा के
तार कैसे होने
चाहिए श्रोण ?
श्रोण ने कहा
,मध्य में होने
चाहिए /ठीक बीच
में होने चाहिए
/न बहुत कसे
,न बहुत ढीले
:न कसे ,न
ढीले /उस ठीक
मध्य रेखा पर
होने चाहिए ,तभी
संगीत पैदा होता
है /
बुद्ध ने कहा
,मैं तुझसे इतना
ही कहने आया
हूँ ,जो वीणा
का नियम है
,वही जीवन का
नियम भी है
/ठीक मध्य में
होने से ही
जीवन -संगीत पैदा
होता है /