Tuesday, January 10, 2012

“तीरण से काटे तीर ,तीरण को काटे तीर” (दैनिक जागरण ,१७ जनवरी २०११ में प्रकाशित )


“तीरण से काटे तीर ,तीरण को काटे तीर”
आज सारा दिन यही सोचता रहा की क्या लिखूं ? सारा दोष मीडिया का है ,न उनके पास मसाला था न मेरे पास मसला |तड़का लगाने के लिए पहली शर्त है दाल का होना ,और दाल गलाना मीडिया का विशेषाधिकार है और गाल बजाना हमारा |इस चुनावी चक्कलस में पूरा   दिन एक लेखक मुद्दे के अभाव में भटके यह समाज , लोकतंत्र और पत्रकारिता की घोर लापरवाही का सबूत है |

                                     समाज का उत्तर -दायित्व है घटना को अंजाम देना ,लोकतंत्र का दायित्व है घटना स्थल का निरीक्षण करना तथा पत्रकारिता का दायित्व उसे मसाला मिला कर प्रस्तुत करना |लेखक तो निरीह है वह तो बस घर में बैठ कर उन तीनो संस्थाओं को खरी -खोटी सुना सकता है ,अगर घटना न घटे तो साहित्य का विकास अवरुद्ध हो जाये ,अगर अंग्रेज न होते तो हमें मुंशी प्रेमचंद की नब्बे प्रतिशत रचनाओं का रस कैसे मिलता ?अतः आप सबसे हिंदी के उत्थान हेतु आग्रह है ,की घटनाओं के प्रवाह को अवरुद्ध न करें  |

                            घर में दाल -रोटी चलती रहे और संपादक महोदय की कृपा -दृष्टि बनी रहे इस हेतु कल की ही घटना को नयी थाली में परोस रहा हूँ ,कृपया आतिथ्य परंपरा का निर्वाह करते हुए इसे भी उसी सुरुचि -पूर्ण भाव से ग्रहण करें |

                       कल एक संवैधानिक संस्था ने एक चुनाव चिह्न प्रतीक को लाल कपडे से तथा उस पार्टी के नायिका के प्रतीक को हरे कपडे से ढँक कर जन -जागृति का सूत्रपात कर दिया |
                                    हरेक प्रबुद्ध महानुभावों ने अपने-अपने विचार प्रस्तुत किये ,एक महोदय ने तो कंगारू को हाथी का विकल्प बताया ,पर समस्या तो वही रह जाएगी , कंगारू के प्रतीक को नीले कपडे का वस्त्र धारण करना पड़ेगा |

                         एक विकल्प है - प्रतीकों के बजाये प्रत्यक्ष को तरजीह दी जाये और एक संवैधानिक संस्था को दूसरे संवैधानिक संस्था से उलझाया जाये -"विषस्य -विषमोषधम  " की तर्ज पर |
                                           उन्होंने हाथी के प्रतीक को ओझल किया आप साक्षात् हाथिओं को सारे शहर में खड़ा कर दें ,अगर उनपर पर्दा डाला गया तो वन्य -प्राणी अधिनियम तथा पशुओं के प्रति क्रूरता का मामला वन- विभाग में दर्ज करा दें ,जब तक चुनाव- आयोग और वन- विभाग आपस में उलझे रहेंगे तबतक चुनावी -बैतरणी पार |

                                   अगर हाथी न मिले उसी कद -काठी के किसी इन्सान को बैठा दें, अगर भूल से भी हाथी को उन्होंने हाजत में बंद किया तो उसके आहार को जुटाने में उन्हें अपना वेतन भी कम पड़ जायेगा मसल है -मरा हाथी भी नौ -लाख का होता है |
                                        फिर भी अगर काम ने बने तो अपने गणेश  जी  कब  काम आयेंगे ,हाथी पर सनातन -पंथीओं की गोष्ठी बुला लें ,बेडा पार |

                                        हाथी से अब हाथ पर आते हैं ,हाथ वालों का तो काम शुरू से ही आसान है ,अपने उद्दंड कार्यकर्ताओं को हर चौक पर हाथ ऊपर कर के खड़ा होने को कहें ,बीच-बीच में पाली बदलते रहें ,कार्यकर्ताओं से भी निपटारा और प्रचार भी,महिला कार्यकर्ताओं का उपयोग जनता को अधिक आकर्षित करेगा  ,अगर उनपर पर्दा डाला तो महिला आयोग बिना शिकायत के ही चुनाव- आयोग को अपनी शक्ति का एहसास करा देगी ,हो गया काम आपका |

                                          साईकिल वाले ठीक चुनाव के दिन प्रदुषण -मुक्ति के नाम पर साईकिल दौड़ या साईकिल मैराथन का आयोजन करा दें ,अगर रोक लगायी गयी तो प्रदूषण -नियंत्रण विभाग को सूचित कर दें ,ओलम्पिक एसोसिएसन वैसे भी कॉमवेल्थ के बाद से सुस्त बैठे है , उन्हें पूर्व में ही आमंत्रित कर दें ,दोनों मिलकर चुनाव आयोग की दौड़ लगवा देंगे ,आप का भी भला हो जायेगा |
                                          कमल वाले रातो -रात शहर के हर नाले में कमल के पौधे पुष्प सहित नर्सरी से लाकर लगा दें ,अगर उन्हें हटाया गया तो पर्यावरण मंत्रालय में शिकायत दर्ज करा दें ,या ग्लोबल वार्मिंग का ऐसा बवाल खड़ा करें की जनता को लगे अगर इन फूलों को हटाया गया तो सच-मुच में ही २०१२ में धरती का विनाश हो जायेगा |

                                      इस तरह हर दल की वैतरणी पार हो जाएगी ,बस याद रखें -"तीरण से काटे तीर ,तीरण को काटे तीर “!

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